परोपकार पर निबंध।

 परोपकार :-


परोपकार का शाब्दिक अर्थ है (पर: + उपकार) अर्थात दूसरे के लिए जो कार्य किया जाए उसके बदले कुछ ना लिया जाए उसे परोपकार कहते हैं।

परोपकार अर्थात दूसरे की भलाई करना जब हम किसी गरीब असहाय भिखारी की मदद करते हैं , उसकी भूख को मिटा देते हैं वह परोपकार कहलाता है।

मेरे माता-पिता , शिक्षक और चिकित्सक है वह दूसरों की मदद करते हैं। हम भी बड़ा होकर परोपकारी बनना चाहता हूं।

परोपकार करना मानव का सबसे बड़ा धर्म है। परोपकार करने के लिए हम कहीं भी या कार्य कर सकते हैं। किसी असहाय , मददगार को कुछ मांगे और दे देना ही परोपकार है।

परोपकार के संबंध में अनेक विद्वानों ने अनेक तरह से समझाया है। परोपकार का अर्थ है जरूरतमंद व्यक्तियों को दान स्वरूप कुछ देना, यदि आपके घर पर भिखारी आ जाए तो उसे उसके आवश्यकतानुसार यथोचित दान देना है परोपकार है। उदाहरण के लिए श्री कृष्ण ने सुदामा को दान स्वरूप जो कुछ दिया, वह परोपकार कहलाता है। जब हम बिना मांगे किसी व्यक्ति की आवश्यकता समाज उसे दान दे देते हैं तो वह परोपकारी कहलाता है। कृष्ण ने सुदामा के साथ ऐसा ही वर्ताव किया; इसी संबंध में रहीम कवि कहते हैं :- 



''जे गरीब पर हित करें ,

                    ते रहीम बड़ लोग ''

रहीम कवि कहते हैं ऐसे उपकार करने वाले व्यक्ति इस लोक के वासी नहीं होते वरण अलौकिक सुख की प्राप्ति होती है।

              अत: दान भी उसी सुपात्र को देना चाहिए जो लेने लायक है यदि आप का दान कुपात्र के पास चला जाता है, तो वह पुण्य नहीं वरन पाप की कोठी में आता है।

तभी तो ठीक कहा गया है :- 

'परोपकाराय पुण्याय पापाड्य च परपिड्नम् '

अर्थात - परोपकार करना पुण्य है तो किसी को  कष्ट देना पाप के समान है। 

अतः सदैव सुपात्र को दान देना चाहिए कुपात्र को दान देना, दिखावटी की कोठी में आता है। अत: दान को दान समझ कर देना ही परोपकार है। 

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