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Showing posts from July, 2021

अनुशासन पर निबंध।

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  अनुशासन :-  अनुशासन का संधि - ''अनु + शासन'' अर्थात शासन के पीछे पीछे चलना ही अनुशासन है। अनुशासन की बातों का कहना ही क्या है -  ''अनुशासन हीन हो जाने के कारण ही लंका  का नाश हुआ था।'' सबकी नजरों में खटकता रहता है। मानव के जीवन में अनुशासन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अनुशासन जीवन के हर क्षेत्र में होना चाहिए। एक अनुशासित व्यक्ति ही जीवन के उच्च शिखर को प्राप्त कर सकता है। यदि परिवार की बात ले तो पिता-पुत्र, माता-पुत्री एवं भाई-बहन में भी अनुशासन की बहुत जरूरी है। तभी वह परिवार आगे बढ़ता है। यदि आपको जीवन में आगे बढ़ना है, तो अनुशासन अपनाए युद्ध के क्षेत्र में अनुशासन, एवं शिक्षा को प्राप्त करने में भी अनुशासन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अनुशासन के अभाव में युद्ध में हार हो जाती है, बागडोर हाथ से छूटकर निकल जाती है। खासकर छात्र-छात्राओं के जीवन में अनुशासन का महत्व पूर्ण सहयोग होता है। छात्रों को बचपन से ही अनुशासन का पाठ पढ़ना चाहिए, जब छात्रों में अनुशासन नियमबध्दता आत्मसंयम और ब्रह्मचर्य का पालन होगा, तभी वह छात्र अपने मार्ग में सफल हो सकता है। छ...

रामनरेश त्रिपाठी का जीवन परिचय

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  रामनरेश त्रिपाठी का जीवन परिचय जीवन परिचय -- रामनरेश त्रिपाठी का खड़ीबोली काव्य में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने कई दृष्टियों से हिन्दी-साहित्य को अतुलनीय समृध्दि प्रदान की है। राष्ट्रीय भावनाओं पर आधारित इनका काव्य अत्यन्त ह्रदयस्पर्शी है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के अनुसार, "पं॰ रामनरेश त्रिपाठीजी मननशील, विद्वान्, परिश्रमी, लोक-साहित्य के धनी थे। इन्होंने अपनी रचनाओं में राष्ट्रप्रेम, मानव-सेवा, पवित्र प्रेम का नवीन आदर्श उत्पन्न किया है।" कविता का आदर्श और सूक्ष्म सौन्दर्य एक साथ चित्रित करनेवाले कवि, रामनरेश त्रिपाठी का जन्म सन् 1889 ई॰ में जिला जौनपुर के अन्तर्गत कोइरीपुर ग्राम के एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। इनके पिता पं॰ रामदत्त त्रिपाठी एक ईश्वरभक्त ब्राह्मण थे। इन्होंने केवल नवीं कक्षा तक ही विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की, बाद में स्वतन्त्र रूप से अध्ययन किया तथा साहित्य-सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। इनको केवल हिन्दी ही नहीं, वरन् संस्कृत, बाँग्ला और गुजराती भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान था। त्रिपाठीजी 'हिन्दी-साहित्य सम्मेलन, प्रयाग...

परोपकार पर निबंध।

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  परोपकार :- परोपकार का शाब्दिक अर्थ है (पर: + उपकार) अर्थात दूसरे के लिए जो कार्य किया जाए उसके बदले कुछ ना लिया जाए उसे परोपकार कहते हैं। परोपकार अर्थात दूसरे की भलाई करना जब हम किसी गरीब असहाय भिखारी की मदद करते हैं , उसकी भूख को मिटा देते हैं वह परोपकार कहलाता है। मेरे माता-पिता , शिक्षक और चिकित्सक है वह दूसरों की मदद करते हैं। हम भी बड़ा होकर परोपकारी बनना चाहता हूं। परोपकार करना मानव का सबसे बड़ा धर्म है। परोपकार करने के लिए हम कहीं भी या कार्य कर सकते हैं। किसी असहाय , मददगार को कुछ मांगे और दे देना ही परोपकार है। परोपकार के संबंध में अनेक विद्वानों ने अनेक तरह से समझाया है। परोपकार का अर्थ है जरूरतमंद व्यक्तियों को दान स्वरूप कुछ देना, यदि आपके घर पर भिखारी आ जाए तो उसे उसके आवश्यकतानुसार यथोचित दान देना है परोपकार है। उदाहरण के लिए श्री कृष्ण ने सुदामा को दान स्वरूप जो कुछ दिया, वह परोपकार कहलाता है। जब हम बिना मांगे किसी व्यक्ति की आवश्यकता समाज उसे दान दे देते हैं तो वह परोपकारी कहलाता है। कृष्ण ने सुदामा के साथ ऐसा ही वर्ताव किया; इसी संबंध में रहीम कवि कहते हैं :-...

विलोम शब्द

  Hindi Opposite Words (1-20):       शब्द                      विलोम सपूत                     कपूत (1) अंकुश                 निरंकुश (2) अंगीकार             अस्वीकार (3) अंतर                   बाह्य (4) अंशतः                 पूर्णतः (5) अकलुष               कलुष (6) अकाल                सुकाल (7) अक्रूर                  क्रूर (8) अगला                पिछला (9) अग्रज                अनुज (10) अग्राह्य               ग्राह्य (11) अग्रिम    ...

होली पर निबंध। (केवल कक्षा 2 और 3 के लिए)

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होली होली हिंदुओं का मुख्य त्यौहार है। यह फागुन के पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह रंगों का त्योहर है। इसके 1 दिन पहले होलिका दहन होती है। होली के दिन मीठे पकवान बनाए जाते हैं। नए-नए कपड़े पहनते एक दूसरों को रंग अबीर लगाते हैं। गांव घरों में चारों तरफ खुशियां छाई रहती है।  होली एक पौराणिक त्यौहार है। इस दिन बड़े-बूढ़े सभी एक दूसरे को रंग लगाते हैं। होली मस्ती और आनंद का पर्व है। इसे मना कर हम सभी खुशियों का आनंद लेते हैं। यह भाई-चारे का पर्व है। इसे हम सभी मिलजुल कर मनाते हैं। यह प्रत्येक वर्ष आती है। MANOJ HINDI CLASSES