राम वनगमन
राम तुम वन गमन करोगे।
अयोध्या का मन सुना करोगे ।।
पिता को दुविधा में छोड़ोगे।
क्या वहां जाकर रन छोड़ोगे।।
या सारे संसार का कल्याण करोगे।।
मेरे विचार से वन जाओगे।
माता पिता और भाई को विस्मृत न करोगे।।
तुम रघुवंश मणि राम कहलाओगे ,
आज कैकई विमाता कहलाएगी।
फिर भी तुम अपना धर्म बताओगे।।
राम तुम श्रेष्ठ कुल भूषण हो,
मर्यादा पुरुषोत्तम और आदर्श का परिचय हो।
युग युग तक तुम्हारी जय हो।
तुम्हारे विचार वंदनिय हो।
मैं जानता हूं तुम दयावान हो।।
सबरी , अहिल्या और केवट को तारा है ,
संसार को दुख से उबारा है।
तुम्हारे नामों का स्मरण रावण ने जाना है।
तुम तो मात्र एक सहारा है।
मुझे जैसे पतितो का प्यारा है।।
तेरे कुल की महिमा न्यारा है।
जिसने समुद्र को धरती पर उतारा है।।
उसी वंशज के रूप में नाम तुम्हारा है।
जिसने पतितो को भी उबारा है।
हां-हां बस यही राम राज्य हमारा है।।
प्रस्तुती: मनोज कुमार पोद्दार
(हिन्दी शिक्षक)